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Tuesday 9 July 2013

रेलवे द्वारा टिकटों की कालाबाजारी

शीर्षक पढ़कर चौंकिये मत। मैं बहुत गम्भीरता से कह रहा हूँ कि रेल विभाग टिकटों की जमकर कालाबाजारी कर रहा है। जब किसी वस्तु की जानबूझकर नकली कमी पैदा की जाती है और फिर उसे ऊँचे और मनमाने मूल्य पर बेचा जाता है, तो उसे कालाबाजारी कहा जाता है। रेल विभाग ठीक यही कर रहा है।

रेलवे ने सभी गाडि़यों में सभी श्रेणी की टिकटों का एक बड़ा भाग विभिन्न वर्गों के कोटे और तत्काल कोटे के नाम पर अलग कर रखा है, जिनका आरक्षण आम यात्रियों को नहीं किया जाता। अगर सभी कोटों को जोड़ा जाये तो आधी से कुछ कम सीटें रेलवे ने अपने हाथ में रखी हुई हैं और बाकी सीटों का ही आरक्षण किया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि सीटें उपलब्ध होते हुए भी आम यात्री को लम्बी प्रतीक्षा सूची में पड़े रहना पड़ता है। कुल सीटों का लगभग 20 प्रतिशत भाग रेलवे तत्काल कोटे के नाम पर कालाबाजार में बेचता है।

जो यात्री महीनों पहले से टिकटों की प्रतीक्षा सूची में हैं और टिकटों का पूरा पैसा जमा करा चुके हैं, उनको छोड़कर तत्काल कोटे के नाम पर नये आने वाले लोगों को अधिक पैसे लेकर सीटें पकड़ा देना प्रतीक्षारत यात्रियों के साथ अन्याय और बेईमानी नहीं तो क्या है? रेलवे में तत्काल जैसा कोई कोटा होना ही नहीं चाहिए, क्योंकि जो लोग महीनों पहले से अपनी यात्रा की योजना बना चुके हैं, उनको हर हालत में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। यदि किसी को अचानक जाना पड़ता है, तो वह आम यात्री की तरह सामान्य बोगी में जा सकता है या यदि उसके पास अधिक पैसा है तो हवाई यात्रा या अन्य साधनों से जा सकता है।

इसलिए रेलवे को चाहिए कि सभी प्रकार के अलग-अलग कोटे समाप्त करके केवल एक विवेकाधीन कोटा रखा जाये, जिसका आकार 5 प्रतिशत से अधिक न हो और जिसका लाभ विशिष्ट व्यक्तियों को ही मिले। इससे दलालों का झंझट खत्म होगा और आम यात्रियों को बिना परेशानी के टिकट मिलेगा।

दूसरी बात, रेलवे को एक महीने या उससे भी पहले आरक्षण कराने वाले यात्रियों को सीट मिलने की गारंटी देनी चाहिए, क्योंकि इस सेवा पर रेलवे का एकाधिकार है। यदि उसके पास साधन उपलब्ध नहीं हैं, तो एक माह का समय वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त है। रेलवे की अकर्मण्यता का परिणाम वे यात्री क्यों भुगतें, जो महीनों पहले से टिकट का पूरा पैसा जमा करा चुके हैं?

तीसरी बात, प्रतीक्षा सूची के यात्रियों से बिना सीट दिये टिकटों के पैसों में से कटौती करना गलत है, क्योंकि जब तक रेल विभाग यात्री को सीट मिलने की गारंटी नहीं देता, तब तक लिपिकीय खर्च के अलावा अन्य कोई भी कटौती करने का अधिकार उसे नहीं है। यह इसलिए भी कि प्रतीक्षा सूची की राशि पर कोई भी ब्याज यात्री को नहीं मिलता, जबकि रेलवे को उससे करोड़ों की आय होती है।

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