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Monday 21 January 2013

संसार में गाँधी और नेहरू का सम्मान क्यों?

मैं गाँधी और नेहरू के बारे में इस ब्लाग में अनेक लेख लिख चुका हूँ, जिनको प्रशंसा और आलोचना दोनों मिली हैं। हालांकि मेरे लेखों में किसी ने एक भी गलती अभी तक नहीं बतायी है, लेकिन आलोचकों का मुख्य जोर इस बात पर है कि सारे संसार में गाँधी और नेहरू की बहुत इज्जत है, मैं उनकी बुराई क्यों कर रहा हूँ। सबसे पहले तो यह आपत्ति कुछ गलत है, क्योंकि यदि किसी व्यक्ति की संसार में इज्जत है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसकी गलतियों को भी सामने न लाया जाये।
यदि गलतियाँ मामूली हों, जो किसी भी व्यक्ति द्वारा अनजाने में की गयी हों, तो उनको नजरन्दाज किया जा सकता है। न्यायालय भी ऐसे लोगों को चेतावनी देकर या मामूली सांकेतिक दण्ड देकर छोड़ देते हैं। लेकिन यदि गलतियाँ पहाड़ जैसी हों और देश-समाज के प्रति जानबूझकर किये गये गम्भीर अपराध हों, तो उनको मामूली मानकर छोड़ देना असम्भव है। ऐसे लोगों की असली छवि समाज के सामने लायी जानी ही चाहिए। हिटलर में भी बहुत गुण थे, परन्तु यहूदियों के प्रति उसने जो अपराध किये थे, उनके कारण उसकी बहुत आलोचना की गयी है और आज भी की जाती है, जो कि ठीक है। गाँधी-नेहरू की गलतियों में विशेषता यह है कि उनके ये अपराध स्वयं अपने देश और समाज के प्रति थे, इसलिए संसार तो उनको सामने लायेगा नहीं, यह कार्य हमें स्वयं ही करना होगा।
रही बात गाँधी-नेहरू के सम्मान की। तो मैं पहले ही लिख चुका हूँ कि आजादी के बाद देश में लम्बे समय तक केवल कांग्रेस की सरकारें रहीं और उन सरकारों ने अपने पालतू इतिहासकारों से केवल वही इतिहास लिखवाया, जिससे गाँधी-नेहरू और कांग्रेस की छवि चमकती हो और उनकी गलतियाँ दबी-ढकी रहती हों। देश भर के स्कूलों में प्रारम्भ से ही यही इतिहास पढ़ाया जाता रहा है और यही दुनिया को बताया जाता रहा है। दुनिया तो वही जानेगी, जो उसे बताया जाएगा। इसलिए यदि गाँधी को संसार ने ‘महात्मा’ और ‘सत्य का पुजारी’ मान लिया तो उनकी कोई गलती नहीं है। इसी प्रकार यदि नेहरू को संसार ने ‘शान्ति-दूत’ स्वीकार कर लिया, तो यह भी अज्ञान के कारण ही है।
दूसरा कारण यह भी है कि संसार ने प्रायः भारत के ऐसे व्यक्तियों को आदर और मान्यता दी है, जिनके कार्यों के कारण भारत कमजोर हुआ हो। उदाहरण के लिए, संसार में बुद्ध की बहुत ख्याति है, क्योंकि उन्होंने अहिंसा का दर्शन संसार को दिया। उनकी अहिंसा को राज्य की नीति बना लेने के कारण अशोक को भी महान् माना जाता है। लेकिन उनकी इस अत्यधिक अहिंसा के कारण ही हमारा देश कमजोर हुआ और आगे चलकर देश लुटेरों और हत्यारों का गुलाम बन गया। संसार ने कभी चाणक्य या चन्द्रगुप्त को महान् नहीं माना, जिनके कारण देश की शक्ति बढ़ी और सिकन्दर-सेल्यूकस जैसे लुटेरों को भी हार कर लौटना पड़ा। इसी कड़ी में वे गाँधी और नेहरू को महान् मानते हैं, जिनके कारण हमारे देश को विभाजन, करोड़ों नागरिकों को विस्थापन और अपमान सहना पड़ा।
यह बात भी नहीं है कि मुझसे पहले देश के विचारकों ने गाँधी-नेहरू के असली चरित्र को उजागिर न किया हो। एक वामपंथी लेखक हंसराज रहबर ने दो पुस्तकें लिखी हैं- ‘गाँधी बेनकाब’ और ‘नेहरू बेनकाब’। इसमें उन्होंने इन दोनों व्यक्तियों की महानता की बखिया उधेड़ी है और बताया है कि दोनों वास्तव में कितने झूठे, पाखंडी और क्षुद्रहृदय थे। लेकिन इस लेखक का जोर केवल उनके व्यक्तिगत चरित्र पर है। वामपंथी होने के कारण उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इन दोनों की गलत और एक पक्षीय नीतियों के कारण हमारे देश को कितनी हानि हुई।
अन्य कई लेखकों ने भी गाँ
धी और नेहरू की कमजोरियों को उजागर किया है। भारतीय संविधान के शिल्पी डा. अम्बेडकर ने अपने एक लेख में लिखा था- ”यदि किसी ऐसे पुरुष को जिसके मुँह में राम और बगल में छुरी हो, महात्मा की उपाधि दी जा सकती है, तो गाँधी सचमुच महात्मा थे।“ गाँधी साहित्य के प्रमुख शोधकर्ता विद्वान् टी.के. महादेवन का कहना है- ”गाँधी की आत्मकथा (सत्य के प्रयोग) असत्यों की पोटली के समान है।“ एक अन्य जगह उन्होंने लिखा है- ”आधुनिक भारत को अपनी जकड़ में लेने वाली सबसे बड़ी मुसीबत थी मोहनदास कर्मचन्द गाँधी।“ इसी प्रकार कई विचारकों और लेखकों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से गाँधी की आलोचना की है। स्वयं गाँधी के पौत्र अरुण गाँधी ने उनको साधारण पुरुष बताते हुए देवत्व में पहुँचा देने की निन्दा की है।
इसी प्रकार संसार के अनेक विचारकों ने नेहरू की भी निन्दा की है। उनकी प्रशंसा केवल उन देशों ने की है, जिनका स्वार्थ इससे सिद्ध होता है।

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