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Sunday 8 January 2012

हिन्दू-मुस्लिम एकता का दिवास्वप्न


हिन्दू और मुसलमान भारत के दो सबसे बड़े समुदाय हैं. देश के विकास के लिए उनमें परस्पर सद्भाव होना आवश्यक है. प्रचलित भाषा में इसे एकता कहा जाता है. मोहनदास करमचंद गाँधी ने हिन्दू और मुसलमानों की एकता का स्वप्न देखा, तो यह अपने आपमें गलत नहीं है. लेकिन वे यह भूल गए कि दो समुदायों की एकता तभी संभव होती है जब दोनों में समन्वय के तत्व मौजूद हों. एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता इसकी न्यूनतम आवश्यकता है. हिन्दू समाज में यह प्रचुर मात्रा में है, जबकि मुस्लिम समाज में नाम मात्र को भी नहीं है.
यदि गाँधी ने मुसलमानों का १४०० वर्षों का इतिहास पढ़ा होता तो वे कभी हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात नहीं करते. इनके पूरे इतिहास में एक उदाहरण भी ऐसा नहीं मिलता जब इन्होने किसी अन्य समुदाय के प्रति ज़रा भी सहिष्णुता दिखाई हो. इसके विपरीत इनका पूरा इतिहास घोर असहिष्णुता, धर्मान्धता, रक्तपात और आतंकवाद से भरा हुआ है. इसलिए मुसलमानों के साथ किसी भी अन्य समुदाय की एकता होना असंभव है. गाँधी ने यह तो सही सोचा कि आजादी कि लड़ाई में मुसलमानों को भी साथ में आना चाहिए. लेकिन जो तरीका उन्होंने अपनाया वह बिलकुल गलत ही नहीं सरासर मूर्खतापूर्ण था.
उस समय तुर्की में खलीफा को गद्दी से हटा दिया गया था और उदार लोकतंत्र की स्थापना की गई थी. इसके विरुद्ध रूढ़िवादी मुसलमान आन्दोलन कर रहे थे, जिसे "खिलाफत आन्दोलन" कहा गया. गाँधी ने बिना विचार किये ही इस आन्दोलन को अपना समर्थन दे दिया. जबकि इससे हमारे देश का कुछ भी लेना-देना नहीं था. जब यह आन्दोलन असफल हो गया, जो कि होना ही था, तो मुसलमानों ने अपनी खीझ उतारने के लिए केरल के मोपला क्षेत्र में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अमानुषिक अत्याचार किये, माता-बहनों का शील भंग किया तथा मनमानी लूट-पाट और हत्याएं कीं. मूर्खता की हद तो यह है कि गाँधी ने इन दंगों की आलोचना भी नहीं की और मुसलमानों की गुंडागर्दी को यह कहकर उचित ठहराया कि वे तो अपने धर्म का पालन कर रहे थे.
देखा आपने कि गाँधी को गुंडे-बदमाशों के धर्म की कितनी गहरी समझ थी? पर उनकी दृष्टि में उन हिन्दू माता-बहनों का कोई धर्म नहीं था, जिनको गुंडों ने भ्रष्ट किया. मुसलमानों के प्रति गाँधी के पक्षपात का यह अकेला उदाहरण नहीं है, बल्कि आगे भी वे मुसलमानों की हर गलत बात को सही बताते रहे, जैसा कि हम आगे देखेंगे. इतने पर भी उनका और देश का दुर्भाग्य कि कमबख्त हिन्दू-मुस्लिम एकता न कभी होनी थी न हुई.

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