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Sunday 22 May 2016

स्वास्थ्य के लिए भोजन

भोजन जीवन के लिए एक अति आवश्यक वस्तु है। भोजन से हमारे शरीर को पोषण प्राप्त होता है और उसमें होने वाली कमियों की भी पूर्ति होती है। शरीर की शक्ति बनाये रखने और उससे काम लेते रहने के लिए भोजन उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार कार के लिए पेट्रोल या डीजल। हमारा जीवन भोजन पर ही निर्भर है। भोजन के अभाव में शरीर की शक्ति नष्ट हो जाती है और जीवन संकट में पड़ जाता है।
भोजन का स्वास्थ्य से बहुत गहरा सम्बंध है। भोजन करना एक अनिवार्य कार्य है। इसी प्रकार हम अन्य कई अनिवार्य कार्य करते हैं, जैसे साँस लेना, मल त्यागना, मूत्र त्यागना, स्नान करना, नींद लेना आदि। इन कार्यों में हमें कोई आनन्द नहीं आता, परन्तु भोजन करने में हमें आनन्द आता है। यह तो प्रकृति माता की कृपा है कि भोजन करने जैसे अनिवार्य कार्य में भी उसने स्वाद का समावेश कर दिया है, जिससे भोजन करना हमें बोझ नहीं लगता, बल्कि आनन्ददायक अनुभव होता है। लेकिन अधिकांश लोग प्रकृति की इस कृपा का अनुचित उपयोग करते हैं और स्वाद के वशीभूत होकर ऐसी वस्तुएँ खाते-पीते हैं, जो शरीर के लिए कतई आवश्यक नहीं हैं, बल्कि उलटे हानिकारक ही सिद्ध होती हैं। भोजन का उद्देश्य शरीर को क्रियाशील बनाए रखना होना चाहिए। परन्तु अधिकांश लोग जीने के लिए नहीं खाते, बल्कि खाने के लिए ही जीते हैं। ऐसी प्रवृत्ति वाले लोग ही प्रायः बीमार रहते हैं।
हमारे अस्वस्थ रहने का सबसे बड़ा कारण गलत खानपान होता है। यदि हम अपने भोजनअको स्वास्थ्य की दृष्टि से संतुलित करें और हानिकारक वस्तुओं का सेवन न करें, तो बीमार होने का कोई कारण नहीं रहेगा। हानिकारक वस्तुओं का सेवन करने पर ही रोग उत्पन्न होते हैं और उनका सेवन बन्द कर देने पर रोगों से छुटकारा पाना सरल हो जाता है। कई प्राकृतिक तथा अन्य प्रकार के चिकित्सक तो केवल भोजन में सुधार और परिवर्तन करके ही सफलतापूर्वक अधिकांश रोगों की चिकित्सा करते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में तो खान-पान का सबसे अधिक महत्व है। इसमें किसी दवा आदि का सेवन नहीं किया जाता, बल्कि भोजन को ही दवा के रूप में ग्रहण किया जाता है और इतने से ही व्यक्ति स्वास्थ्य के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। आयुर्वेद में कहा गया है-
न चाहार समं किंचिद् भैषज्यमुपलभ्यते।
शक्यतेऽप्यन्न मात्रेण नरः कर्तुं निरामयः।।
अर्थात् ”आहार के समान दूसरी कोई औषधि नहीं है। केवल आहार से ही मनुष्य रोगमुक्त हो सकता है।“
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. ७, सं. २०७३ वि.

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 9

मैं नभाटा में अपने ब्लॉग पर राजनीति के अलावा अन्य विषयों पर भी बीच बीच में लिखता रहता था. मैं प्रारम्भ से ही प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद का समर्थक हूँ और एलोपैथी से बहुत चिढ़ता हूँ, हालाँकि मेरे घर-परिवार में ही अनेक एलोपैथिक डाक्टर हैं.
ऐसे ही एक अवसर पर मैंने एक लेख लिखा- "झोलाछाप डाक्टर बनाम अटैचीछाप डाक्टर". इस लेख में एलोपैथी के इन दोनों श्रेणियों के डाक्टरों की तुलना की गयी थी और बताया गया था कि दोनों ही प्रकार के डाक्टर समाज की एक जैसी कुसेवा कर रहे हैं.
इस लेख पर बहुत कमेंट आये. कई लोगों ने यह समझा था कि मैं अटैचीछाप डाक्टरों का विरोध करके झोलाछाप डाक्टरों का पक्ष ले रहा हूँ. लेकिन मेरा मतलब ऐसा बिल्कुल नहीं था. मैंने तो दोनों का बराबर विरोध किया था. कई लोगों ने इसबात पर बहुत बहस की, लेकिन अधिकांश ने मेरा समर्थन ही किया.
कई लोगों ने पूछा कि इसका विकल्प क्या है, तो मैंने उनको बताया कि प्राकृतिक चिकित्सा ही सबसे अच्छी पद्धति है. मैंने इस बारे में एक पुस्तिका भी लिखी है, जिसकी सूचना मैंने अपने एक लेख "स्वास्थ्य के बारे में एक अनुपम पुस्तिका" में दी और लोगों से वह पुस्तिका ईमेल से मंगाने का आग्रह किया.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इस लेख को पढ़कर सैकड़ों पाठकों ने यह पुस्तिका मंगाई और पढ़कर उसकी बहुत प्रशंसा की.
स्वास्थ्य रहस्य’ नामक इस पुस्तिका में 12 अध्याय हैं, जिनमें ‘स्वास्थ्य क्या है?’ से लेकर प्राकृतिक चिकित्सा, व्यायाम, योगासन, प्राणायाम आदि का विस्तृत परिचय दिया गया है और प्रायः होने वाली शिकायतों की घरेलू प्राकृतिक चिकित्सा भी बतायी गयी है, जिनको कोई भी व्यक्ति बिना किसी खर्च के स्वयं कर सकता है। मेरा दावा है कि इस पुस्तिका में बतायी गयी बातों का पालन करने वाला व्यक्ति कभी बीमार पड़ ही नहीं सकता और यदि पड़ भी जाये तो बिना किसी खर्च के स्वस्थ हो सकता है। स्वास्थ्य पर ऐसी अन्य पुस्तक अभी तक किसी भी भाषा में नहीं लिखी गयी है।
विजय कुमार सिंघल 
आषाढ़ कृ. 1, सं. 2073 वि.

मैं दवायें क्यों बंद कराता हूँ?

कई मित्र मुझसे पूछते हैं कि जब मैं किसी को किसी बीमारी के लिए प्राकृतिक चिकित्सा कार्यक्रम बताता हूँ तो सारी दवायें, विशेष रूप से अंग्रेज़ी दवायें, क्यों बंद करा देता हूँ। यहाँ मैं इसका स्पष्टीकरण दे रहा हूँ।
प्राकृतिक चिकित्सा के साथ सभी दवायें बंद कराने के तीन कारण हैं।
पहला कारण यह है कि दवायें वास्तव में लगभग बेकार होती हैं। वे किसी रोग को ठीक नहीं करतीं बल्कि कुछ लक्षणों को कुछ समय के लिए दबा देती हैं। उदाहरण के लिए, उच्च रक्तचाप और डायबिटीज़ की दवायें केवल इनको बढ़ने से रोक देती हैं, इनको ठीक नहीं करतीं। दवाओं से रोगी को कोई लाभ नहीं होता बल्कि हानि ही होती है। अगर लाभ हो रहा होता तो वे मुझसे चिकित्सा पूछते ही नहीं। इसलिए वे दवायें बंद करना आवश्यक है।
दूसरा कारण यह है कि ये दवायें चिकित्सा कार्य में बाधा डालती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा का मौलिक सिद्धांत शरीर की भीतरी सफाई करना है, जबकि दवायें गंदगी बढ़ाती हैं। अगर दवायें साथ-साथ ली जायेंगी तो प्राकृतिक चिकित्सा से पूरा लाभ नहीं होगा और कई बार हानि भी हो सकती है।
तीसरा और सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारण यह है कि यदि दवाओं के साथ प्राकृतिक चिकित्सा कराने पर लाभ होता है तो मूर्ख रोगी उसका श्रेय दवाओं को देते हैं न कि प्राकृतिक चिकित्सा को। इतना ही नहीं, यदि चिकित्सा से कोई लाभ नहीं होता या हानि होती है तो वे लोग उसका दोष भी प्राकृतिक चिकित्सा पर डाल देते हैं। ऐसा मेरे साथ दो-तीन बार हो चुका है।
इन सब कारणों से मैं किसी को चिकित्सा बताने से पहले सभी दवायें बंद करने की शर्त लगा देता हूँ, अन्यथा कोई सलाह नहीं देता। यह जरूर है कि कई बार दवायें एकदम बंद कराने के बजाय धीरे-धीरे कम करते हुए अधिकतम एक माह में बंद कराता हूँ। लेकिन बंद कराता जरूर हूँ।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. १३, सं. २०७३ वि.

उच्च और निम्न रक्तचाप की प्राकृतिक चिकित्सा

उपचार
* प्रातः काल 6 बजे उठते ही एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद घोलकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* शौच के बाद 5-7 मिनट तक ठंडा कटिस्नान लें, फिर टहलने जायें। तेज़ चाल से कम से कम डेढ़-दो किमी टहलें। 
* टहलने के बाद कहीं पार्क में या घर पर नीचे दी गयी क्रियाएं करें।
- पवनमुक्तासन 1-2 मिनट
- भुजंगासन 1-2 मिनट
- रीढ़ के व्यायाम
- कपालभाति प्राणीयाम 300 बार
- अनुलोम विलोम प्राणायाम 5 मिनट
- अग्निसार क्रिया 3 बार
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार
भोजन
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें।
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का बिना मक्खन का दूध या छाछ।
* दोपहर भोजन 1 से 2 बजे- रोटी, सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या नीबू-पानी-शहद
* रात्रि भोजन 8 से 8.30 बजे - दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खायें।
* परहेज- चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, चीनी, मिठाई, फास्ट फूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं।
* फ्रिज का पानी न पियें। घड़े या सुराही का पानी ही पियें।
* मिर्च-मसाले, खटाई तथा नमक कम से कम लें।
* दिन भर में कम से कम तीन-चार लीटर सादा पानी पियें। हर सवा या एक घंटे पर एक गिलास। जितनी बार पानी पीयेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है।
* भोजन के बाद पानी न पियें। केवल कुल्ला कर लें। उसके एक घंटे बाद एक गिलास सादा पानी पियें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण सादे पानी के साथ लें।
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रहेंगी।
विशेष
* यह कार्यक्रम रक्तचाप के सभी रोगियों के लिए है और समान रूप से उपयोगी है। रोगमुक्त होने में रोग के स्तर के अनुसार एक से तीन महीने तक कम या अधिक समय लग सकता है।
* जो लोग पहले से दवायें खा रहे हैं वे प्रति सप्ताह एक चौथाई दवा कम करते हुए चार सप्ताह यानी एक माह में दवायें बिल्कुल बंद कर दें।
-- विजय कुमार सिंघल
वैशाख पूर्णिमा, सं. २०७३ वि.

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष - 8

नभाटा में अपने ब्लॉग पर लेख लिखते हुए उन पर आने वाली टिप्पणियों से मुझे पता चलता था कि अधिकांश लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बहुत सतही जानकारी है और कई बार तो वह भी गलत है. इसलिए मैंने संघ के बारे में लेखों की एक श्रृंखला लिखना तय किया. इन लेखों को अच्छा प्रत्युत्तर मिला. इनमें से कुछ का लिंक दे रहा हूँ.
संघ निर्माता डा. केशव बलीराम हेडगेवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की स्थापना: क्यों और कैसे
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
द्वितीय सरसंघचालक परमपूज्य श्री गुरुजी
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
संघ विचार परिवार
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
संघ की शाखा में क्या होता है?
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…
इन सभी लेखों पर बड़ी संख्या में टिप्पणियाँ आई थीं, जिनमें से अधिकांश समर्थन में थीं और कुछ विरोध में भी थीं जिनका मैंने उचित उत्तर दिया.
मैंने संघ के बारे में बहुत से भ्रमों का निराकरण करने का प्रयास किया था. जिसमें में सफल रहा.
वैसे बीच बीच में मैं अन्य सामयिक और सामाजिक विषयों पर भी लिखता रहता था.
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शुक्ल 9, सं. 2073 वि.

एसिडिटी की प्राकृतिक चिकित्सा

उपचार
* प्रातः काल 5:30 या 6 बजे उठते ही एक गिलास सादा पानी में आधा नीबू का रस और एक चम्मच शहद घोलकर पियें। फिर 5 मिनट बाद शौच जायें।
* शौच के बाद 5-10 मिनट तक ठंडा कटिस्नान लें, फिर टहलने जायें। तेज़ चाल से कम से कम डेढ़-दो किमी टहलें।
* टहलने के बाद कहीं पार्क में या घर पर नीचे दी गयी क्रियाएं करें।
- पवन मुक्तासन 1-2 मिनट
- भुजंगासन 1-2 मिनट
- रीढ़ के व्यायाम
- नेत्र, मुख और ग्रीवा व्यायाम
- उंगली, कलाई, कोहनी, कंधों के व्यायाम
- कपालभाति प्राणायाम 300 बार
- अनुलोम विलोम प्राणायाम 5 मिनट
- अग्निसार क्रिया 3 बार
- भ्रामरी 3 बार
- उद्गीत (ओंकार ध्वनि) 3 बार
- तितली व्यायाम एक मिनट
* व्यायाम के बाद खाली पेट लहसुन की तीन-चार कली छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े करके सादा पानी से निगल लें या चबायें।
* रात्रि 10-10.30 बजे सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण सादे पानी के साथ लें या एक चम्मच शहद में मिलाकर चाटें।
भोजन
* नाश्ता प्रातः 8 बजे - अंकुरित अन्न या दलिया या एक पाव मौसमी फल और एक कप गाय का बिना मक्खन का दूध या छाछ।
* दोपहर भोजन 1 से 2 बजे- रोटी, सब्जी, सलाद, दही (दाल चावल कभी-कभी कम मात्रा में)
* दोपहर बाद 4 बजे - किसी मौसमी फल का एक गिलास जूस या नीबू-पानी-शहद
* रात्रि भोजन 8 से 8.30 बजे - दही छोड़कर दोपहर जैसा। भूख से थोड़ा कम खायें।
* परहेज- चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, बिस्कुट, मिर्च, खटाई, मिठाई, फास्ट फूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, सिगरेट, तम्बाकू बिल्कुल नहीं।
* सभी तरह की गर्म चीज़ों से बचें। सब्ज़ी भी ठंडी करके खायें।
* फ्रिज का पानी न पियें। मटकी या सुराही का साधारण शीतल जल पियें।
* सब्ज़ी में मसाले तथा नमक कम से कम डालें।
* दिन भर में साढ़े तीन या चार लीटर सादा पानी पियें। हर एक़ या सवा घंटे पर एक गिलास। जितनी बार पानी पीयेंगे उतनी बार पेशाब आयेगा। उसे रोकना नहीं है।
* भोजन के बाद पानी न पियें। केवल कुल्ला कर लें। उसके एक घंटे बाद एक गिलास सादा पानी पियें।
विशेष
* सभी तरह की दवायें बिल्कुल बंद रखें।
* नहाने के साबुन का प्रयोग बंद कर दें। गीली तौलिया से रगड़कर नहायें।
* यदि कभी उल्टी आये, तो कर दें और अगर केवल बेचैनी हो तो आधा कप ठंडा सादा दूध घूँट घूँट करके पियें।
* एक माह बाद अपना हाल बतायें। बीच में कोई समस्या होने पर तत्काल बतायें।
विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. १२, सं. २०७३ वि.

अंकुरित अन्न

कई प्राकृतिक चिकित्सक इसे ‘अमृतान्न’ कहते हैं। हम इसे भोजन का अंग ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भोजन भी बना सकते हैं। यदि यह सम्भव न हो, तो इसे नाश्ते के रूप में सेवन करना बहुत अच्छा रहेगा। यह पकाये हुए अन्न से अधिक लाभदायक होता है और पचने में अत्यन्त हलका होता है।
अन्न को अंकुरित करने की विधि बहुत सरल है। साबुत अनाजों जैसे चना, गेहूँ, मूँग, उड़द, मैथी दाने आदि को आवश्यक मात्रा में लेकर साफ कर लें और एक दो बार साफ पानी में धो लें। अब इनको किसी कटोरे में रखकर पानी में भिगो दें। 10-12 घंटे भिगोये रखने के बाद उनको किसी कपड़े में लपेटकर उसी कटोरे में रख दें और पानी निकाल दें। कटोरे को अच्छी तरह ढक दें।
ऐसा करने से 24 घंटों या अधिक से अधिक 48 घंटों में उनमें अंकुर निकल आयेंगे। उनको एक बार और धोकर खायें। चाहें तो थोड़ा सैंधा नमक और नीबू भी डाल सकते हैं। स्वाद बढ़ाने के लिए आप उसमें धनिया, टमाटर, प्याज, अदरक और हरी मिर्च के टुकड़े और रातभर भिगोये हुए मूँगफली के दाने मिला सकते हैं।
अंकुरित अन्न खाने से हमारे शरीर के लिए आवश्यक सभी विटामिनों और खनिज पदार्थों की पूर्ति हो जाती है। यह पाचन प्रणाली को सुधारने के लिए भी बहुत लाभदायक है, क्योंकि इन्हें पचाने में शरीर को अधिक श्रम नहीं करना पड़ता। इसके विपरीत आग पर पकाये हुए अन्न को पचाने में आँतों पर बहुत दबाव पड़ता है।
आप चाहें तो पूर्णतः कच्चा खाने अर्थात् आग के सम्पर्क में न आयी हुई वस्तुओं को ही ग्रहण करने का व्रत ले सकते हैं। इसे अपक्वाहार कहा जाता है। अपक्वाहार पुराने और हठी रोगों से मुक्ति प्राप्त करने में बहुत कारगर सिद्ध हुआ है। यदि हम अपने आहार में अन्न और फलों का पर्याप्त अनुपात बनाये रखें और मूँगफली के दानों के रूप में चिकनाई भी लेते रहें, तो अपक्वाहार से किसी भी प्रकार की हानि होने की कोई सम्भावना नहीं है।
-- विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. ११, सं. २०७३ वि.